नई दिल्ली. गुवाहाटी स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ एडवांस स्टडी इन साइंस एंड टेक्नॉलोजी (IASST) के दो वैज्ञानिकों की खोज ग्वार (Guar) बोने वाले किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है. संस्थान के वैज्ञानिक देवाशीष चौधरी और सज्जादुर रहमान ने ग्वार गम (Guar gum) और चिटोसन (Chitosan) से ऐसा पॉलीमर बनाया, जिसका उपयोग पैकेजिंग में किया जा सकता है. अगर ग्वार गम और चिटोसन से तैयार पॉलीमर का व्यावसायिक उत्पादन शुरू हो जाए तो ग्वार गम की मांग बहुत बढ सकती है.
कैसे बना यह बायोडिग्रेडेबल पॉलीमर
संस्थान के वैज्ञानिकों ने ग्वार गम और चिटोसन के मिश्रण से एक नया पॉलीमर बनाया है. इसे बनाने में 70 फीसदी ग्वार गम (Guar gum) और 30 फीसदी चिटोसन का प्रयोग किया गया. चिटोसन एक प्राकृतिक, नवीकरण और गैर विषैला तत्व है. इसका आसानी से जैव विघटन हो जाता है. ग्वार गम और चिटोसन से बना यह पॉलीमर पहले से पैकेजिंग में प्रयोग हो रहे पेट्रोलियम आधारित पॉलीमर का विकल्प बन सकता है.
क्या खासियत है नए पॉलीमर की
ग्वार गम और चिटोसन से बनाए गए इस पॉलीमर की खास बात यह है कि इससे बने उत्पाद पर्यावरण को हानि नहीं पहुंचाएंगे. पेट्रोलियम आधारित पॉलीमर से बने पैकेजिंग में काम आने वाले उत्पाद कभी भी डीकंपोज नहीं होते. पर्यावरण के लिए ये बहुत बड़ा खतरा बन चुके हैं. ग्वार गम (Guar gum) और चिटोसन से बने पॉलीमर से पैकैजिंग मैटिरियल का आसानी से जैव विघटन हो जाएगा. इसके अलावा नए पॉलीमर से बना पैकेजिंग मैटिरियल बहुत मजबूत है. इसे पानी में 240 घंटे तक डुबोकर रखा गया तो भी इसका कुछ नहीं बिगड़ा. यह पानी का बहुत बड़ा अवरोधक भी है. पानी इसमें से नहीं गुजर सकता. इस पॉलीमर को 30 दिन तक अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में बाहर रखा गया. इसने विपरीत परिस्थियों को बड़ी आसानी से झेला.
पैकेजिंग मैटिरियल बनाने में सर्वोत्म
उपरोक्त खासियतों के चलते ग्वार गम और चिटोसन के मिश्रण से बने पॉलीमर का प्रयोग पैकेजिंग के काम आने वाले मैटिरियल को बनाने में हो सकता है. इस शोध के परिणामों से वैज्ञानिक उत्साहित है. अगर उनके इस शोध के परिणाम का व्यावसायिक प्रयोग हो तो पैकेजिंग इंडस्ट्री में बहुत बड़ा परिवर्तन आ सकता है. साथ ही विभिन्न वस्तुओं को पैक करने के लिए प्रयोग होने वाले मैटिरियल से पर्यावरण को जो हानि हो रही है, उसको भी रोका जा सकता है.
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ग्वार उत्पादक किसानों को फायदा
IASST द्वारा तैयार किए गए इस नए पॉलीमर का अगर व्यावसायिक उत्पादन होने लगे तो किसानों को बहुत फायदा हो सकता है. वस्तुओं की पैकेजिंग के मैटिरियल की बहुत खपत है. इस इंडस्ट्री में अगर ग्वार गम से बने उत्पाद प्रयोग शुरू हो जाए तो निश्चित ही ग्वार गम की मांग बहुत तेजी से बढेगी. जिसका फायदा ग्वार किसानों को होगा. हालांकि अभी यह शोध अपने आरंभिक चरण में ही है. लेकिन फिर भी इसने ग्वार गम प्रयोग होने के एक ओर सेक्टर की ओर इशारा तो कर ही दिया है.