नई दिल्ली. आमतौर पर कहा जाता है कि खेती (Farming) के काम में कमाई नहीं है. किसान को उसकी मेहनत तक नसीब नहीं होती है.एक हद तक इस बात में सच्चाई भी है.कभी मौसम की मार तो कभी मंडियों में सही रेट ना मिलना. इसके चलते कई युवाओं ने तो कृषि या खेती-बाड़ी (Agriculture) को छोड़ देना ही मुनासिब समझा. आज किसान का बेटा खेती करना नहीं चाहता. वह चाहता है कि पढ़ लिख कर किसी अच्छी नौकरी में सेट हो जाए. न तो मौसम की मार हो और ना ही उसे अपना उत्पादन बेचने के लिए मंडियों के धक्के खाने पड़ें.
हालांकि हमारे बीच में से ही कई बार ऐसी कहानियां निकल कर आती हैं जो हमें सोचने पर मजबूर कर देती हैं और हमारे लिए प्रेरणा भी बन जाती हैं. एक ऐसी ही कहानी है मध्य प्रदेश के जिला शुजालपुर में कालापीपल गांव निवासी ललित परमार की. ललित परमार ने जो किया वह हर किसान के लिए प्रेरणा का स्रोत है. हर किसान ललित की तरह ही कामयाब होने के लिए अपना रास्ता बना सकता है. धान और गेहूं की खेती करने वाले ललित ने आखिर ऐसा क्या किया कि वह आज करोड़पति हैं.
सुजालपुर निवासी ललित परमार ने मैनेजमेंट की पढ़ाई की. उन्होंने नौकरी करने की बजाय कुछ अलग करने का जज्बा दिखाया और सोचा कि कृषि में ही कुछ खास करेंगे. वह लगातार कृषि से जुड़ी जानकारियों को खंगाल ते रहते थे. उन्होंने कई प्रयोग भी किए लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी. फिर बाद में उन्हें पता चला कि काला गेहूं (Black wheat) नाम की भी कोई फसल होती है. जिस के दाम काफी ऊंचे होते हैं. सामान्य गेहूं की तुलना में इसका दाम 3 से 4 गुना तक हो सकता है. फिर क्या था. ललित ने इसके बारे में जानकारी जुटाना शुरू किया. ललित ने पाया कि काला गेहूं सामान्य गेहूं के मुकाबले काफी अच्छा है.
ललित ने सबसे पहले 10 एकड़ में काला गेहूं बोया. पहली बार में ललित को नुकसान भी झेलना पड़ा. लेकिन ललित ने हिम्मत नहीं हारी और फिर से काला गेहूं की खेती की. दूसरी बार उन्हें अच्छा खासा मुनाफा भी हुआ. यह मुनाफा धीरे-धीरे इतना बड़ा कि आज ललित अपने दम पर, अपनी खेती के दम पर करोड़पति बन चुके हैं.
मां के इलाज के लिए पहुंचा काले गेहूं तक
ललित का कहना है कि उनकी मां शुगर के मरीज हैं. शुगर के मरीजों को खाने के लिए पौष्टिक अनाज देने की जरूरत पड़ती है. वह इसी अनाज की तलाश में थे कि किसी ने उन्हें काले गेहूं के बारे में बताया. जब ललित ने इसके बारे में पड़ताल की तो उन्हें पता चला कि काला गेहूं शुगर फ्री होता है.काला गेहूं कितना फायदेमंद साबित हो सकता है इसकी पुष्टि करने के लिए ललित मोहाली के नेशनल एग्री फूड बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च सेंटर पहुंचे. यहां कुछ अन्य विशेषज्ञों के साथ बातचीत करके और कुछ रिसर्च करने के बाद उन्हें इस बात पर पूरा भरोसा हो गया कि काला गेहूं सच में शुगर के रोगियों के लिए वरदान साबित हो सकता है. उन्हें लगा कि उनकी मां के लिए अनाज तो वह पैदा कर ही लेंगे लेकिन कैसा रहे कि इस अनाज को शुगर के अन्य रोगियों तक भी पहुंचाया जाए. क्योंकि लोगों को इसके बारे में पता नहीं होता तो लोग इससे ट्राय भी नहीं करते.
मंडियों में नहीं बेचा गेहूं
अब सवाल यह उठता है कि गेहूं का उत्पादन तो कर लिया मगर मंडियां कहां है जहां पर इन्हें बेचा जा सके. तो ललित इस बात को जानते थे कि मंडियों में काले गेहूं की ज्यादा डिमांड नहीं है. उन्होंने खुद इसकी मार्केटिंग शुरू की और डायरेक्ट लोगों तक इस गेहूं को पहुंचाया. जैसे जैसे लोगों को पता चला कि काले गेहूं में ढेरों गुण है तो लोग खुद ही उनके पास आर्डर भेजने लगे.
₹200 किलो खरीदा काले गेहूं का बीज
सबसे बड़ी समस्या यह थी कि वह काले गेहूं का सही बीज कहां से लाएं. उन्होंने पूरा इंटरनेट खंगाल डाला. पता चला कि शुजालपुर का ही एक अन्य किसान काले गेहूं की खेती करता है. ललित ने उस किसान से संपर्क साधा और उनसे ₹200 प्रति किलो के हिसाब से बीज खरीदा.ललित बताते हैं कि शुरू में तो उन्हें बहुत कठिनाई हुई लेकिन जैसे जैसे तजुर्बा आता गया वैसे वैसे उनकी कमाई भी बढ़ती गई. उनके मुताबिक काला गेहूं ₹7000 से ₹8000 प्रति क्विंटल के हिसाब से बिक जाता है.
शुगर के रोगियों के लिए क्यों है रामबाण
काले गेहूं में एन्थोसाइनीन पिग्मेंट (Anthocyanin Pigment) की मात्रा ज्यादा होती है. इसके कारण यह काला दिखाई देने लगता है. सफेद गेंहू में एंथोसाइनिन की मात्रा 5 से 15 पीपीएम होती है जबकि काले गेहूं में इसकी मात्रा 40 से 140 पीपीएम होती है. काले गेंहू में एंथ्रोसाइनीन एक नेचुरल एंटी ऑक्सीडेंट व एंटीबायोटिक का काम करता है. कहा जाता है कि यह हार्ट अटैक, कैंसर, डायबिटीज, मानसिक तनाव, घुटनों का दर्द, एनीमिया जैसे रोगों में फायदेमंद होता है.