इन्फोपत्रिका. चारों ओर गुलाबी सुंडी (Pink boll worm) ने कहर ढाया हो और वहीं अगर नरमा के किसी खेत में इस बार गुलाबी सुंडी न हो तो आप उसे क्या कहेंगे. चमत्कार या कुछ और. जी हां, ऐसा ही चमत्कार हुआ है बठिंडा में. उस बठिंडा में जहां करीब 2 लाख 37 हजार एकड़ नरमा की फसल में से 70 फीसदी फसल पर गुलाबी सुंडी का भयंकर हमला हुआ है. परंतु नरमा की फसल की दुश्मन यह सुंडी पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी लुधियाना (Punjab agriculture University) के बठिंडा स्थित प्रदर्शनी प्लांटों में वैज्ञानकों की खींची लक्ष्मण रेखा पार नहीं कर पाई है. नतीजा, 5-5 एकड़ के दो प्रदर्शनी प्लांटों में नरमा अपने पूरे शबाब पर है. इन दोनों ही प्लाटों के आसपास खड़े नरमें में गुलाबी सुंडी बहुतायत में है. इन दोनों प्लाटों में गुलाबी सुंडी न आने का कारण है गुलाबी सुंडी को नियंत्रित करने के लिए अपनाई गई एक तकनीक. एक ऐसी तकनीक जो न पर्यावरण को हानि पहुंचाती है, न नरमा की फसल को और न ही किसान को.
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इस लक्ष्मण रेखा को लांघ न पाई गुलाबी सुंडी
पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी का बठिंडा में रीजनल रिसर्च स्टेशन है. इसी स्टेशन ने यहां पर 5-5 एकड़ के दो प्रदर्शनी प्लांट लगाए हैं. पिछले दो वर्षों से यहां पर गुलाबी सुंडी की रोकथाम के लिए यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं. गुलाबी सुंडी को नियंत्रित करने के लिए यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक तकनीक का प्रयोग किया है. इसका नाम है संसर्ग व्यवधान या मैटिंग डिसर्पश्न (mating disruption). इसी तकनीक का कमाल है कि रिसर्च स्टेशन के प्लांटों में गुलाबी सुंडी का हमला न के बराबर है और भरपूर फसल होने की उम्मीद है.
क्या है मैटिंग डिसर्पश्न तकनीक – What is mating Disruption
पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी लुधियाना के कीटशास्त्री और कपास विशेषज्ञ डॉ. विजय कुमार ने अंग्रेजी समाचार पत्र द इंडियन एक्सप्रेस को इस तकनीक के बारे में बताया. उनका कहना है कि इस तकनीक में सिंथेटिक सेक्स फैरोमेन का प्रयोग गुलाबी सुंडी के नर और मादा पतंगों को संसर्ग करने से रोकने के लिए किया जाता है. सिंथेटिक सेक्स फैरोमेन (Synthetic Sex Pheromone) को पेस्ट के माध्यम से नरमा के पौधों पर लगाया जाता है.
ऐसे काम करती है गुलाबी सुंडी को रोकने वाली यह तकनीक – Kaise Gubali Sundi Ko Rokti Hai Ye Technology
कपास के पौधे पर एक पेस्ट लगाया जाता है. ये पेस्ट कपास के तने पर उस जगह से थोड़ा नीचे लगाया जाता है जहां से शाखाएं निकलती हैं. यह पेस्ट सिंथेटिक सेक्स फैरोमेन (Synthetic Sex Pheromone) छोड़ता है. इस फैरोमेन की ओर नर कीट (Gulabi sundi) आकर्षित होते हैं. कीट इसलिए आकर्षित होता है क्योंकि कीट आपस में संवाद रासायनिक गंध से ही करते हैं. मादा जब सेक्स फैरोमेन छोड़ती है तब ही नर को पता चलता है कि मादा संसर्ग या मैटिंग के लिए तैयार है और अंडा पैदा करने के लिए सेक्स चाहती है.
इसी गंध के सहारे वह मादा को ढूंढता है. खेत में बहुत से पौधों पर लगे पेस्ट से जो फैरोमन निकलता है उससे नर भ्रमित हो जाता है. बहुत से पौधों से निकलने वाले कृत्रिम फैरोमन उसके लिए एक भुलभुलैया साबित होता है और वह मादा द्वारा छोड़े जाने वाली गंध को पहचान नहीं पाता. वह संसर्ग के लिए मादा तक नहीं पहुंच पाता. इससे संभोग प्रक्रिया बाधित होती है. नर और मादा संभोग नहीं कर पाते तो मादा अंडे नहीं दे पाती है. इस तरह कीट की जनसंख्या नियंत्रित हो जाती है.
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लगभग 400 पौधों पर लगाया पेस्ट
एक एकड़ में करीब 7000 कपास के पौधे होते हैं. इस पेस्ट को 350 से 400 पौधों पर लगाने की आवश्यकता होती है. इस पेस्ट को इस तरह से लगाया जाता है कि खेत के सारे कोने किनारे कवर हो जाएं. वैज्ञानिकों का कहना है कि पेस्ट को पौधों पर लगाने में ज्यादा समय नहीं लगता. थोड़ा सा पेस्ट ही पौधे पर लगाना होता है. ये उतना ही होता है जितना हम ब्रश करने के लिए टूथब्रश पर पेस्ट लगाते हैं.
सफलता 100 फीसदी अगर समय पर प्रयोग और बड़ा एरिया हो
इस तकनीक का प्रयोग करते समय दो बातें ध्यान में रखनी होती है. पहली, इसे सही समय पर प्रयोग में लाया जाए. दूसरी, ज्यादा से ज्यादा कपास क्षेत्र पर इसे अपनाया जाए. पीएयू वैज्ञानिकों का कहना है कि इस पेस्ट को खेत में तीन बार लगाना होता है. इसे दो विधियों से लगाया जा सकता है. पहली विधि में कपास के पौधों पर पहला लेप बुआई के 50 दिन बाद, दूसरा लेप 80 दिन बाद और आखिरी लेप 110 दिन बाद किया जाता है. दूसरी विधि में बुआई के 60 दिन बाद इस पेस्ट को पौधो पर लगाया जाता है. फिर दूसरा लेप 90 दिन बाद और तीसरा बुआई के 120 दिन बाद लेप लगाया जाता है. खास बात यह है कि यह पेस्ट इंसान, भूमि और पौधों पर कोई प्रतिकूल असर भी नहीं डालता.
पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के बठिंडा स्थित रीजनल रिसर्च स्टेशन के डायरेक्टर डॉक्टर परमजीत सिंह ने इंडियन एक्प्रेस को बताया कि बठिंडा में उन्होंने 5-5 एकड़ के दो प्लाट नरमा के लगाए हैं. इन प्लांट में मैटिंग डिसर्पश्न तकनीक को अपनाया है. वे पिछले दो सीजन से ऐसा कर रहे हैं. इस तकनीक के परिणाम बहुत अच्छे हैं. जहां हमारे खेतों में गुलाबी सुंडी का हमला बहुत ही कम वहीं हमारे प्रदर्शनी प्लांट्स के आसपास के खेतों में गुलाबी सुंडी ने बहुत ज्यादा नुकसान किया है.
डॉक्टर परमजीत का कहना है कि अगर इस तकनीक को बहुत बड़े क्षेत्र में अपनाया जाए तो परिणाम और भी बेहतर होंगे. क्योंकि गुलाबी सुंडी का तीव्र हमला होने पर लारवा उड़कर दूसरे खेतों से उन खेतों में आ जाता है जहां इस पेस्ट का प्रयोग किया गया है.
फिलहाल खर्चा 3600 रुपए एकड़
डॉक्टर परमजीत ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि एक एकड़ में तीन बार इस पेस्ट का उपयोग करने पर 3600 रुपए खर्चा आता है. यह लागत और भी कम हो सकती है अगर इस तकनीक का उपयोग बड़े पैमाने पर होने लगे. क्योंकि मांग बढने पर इस व्यावसायिक उत्पादन होने लगेगा और प्रतिस्पर्धा के कारण पेस्ट के रेट कम होंगे. इस पेस्ट में जिस तत्व का प्रयोग किया गया है वह केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड से पंजीकृत है और कपास की फसल पर इसका कोई प्रतिकूल असर नहीं होता है.