इन्फोपत्रिका. आलू का ब्लैक स्कर्फ (Black scurf of potato), जिसे आम भाषा में काली चित्ती रोग भी कहते हैं, का कारण होती है फंगस रीजाक्टोनिया सोलानी. पूरी दुनिया के आलू उत्पादक किसान इस फंगस से परेशान है. इस रोग को मिट्टी और बीज का उपचार करके रोका जा सकता है. लंबे समय से किसान इसके लिए बीज उपचार (Aalu ka beej upchar) कर रहे हैं. बीजो उपचार की कई दवाएं बाजार में उपलब्ध है. आज हम आपको दो ऐसी दवाओं के बारे में बताएंगे जो काली चित्ती यानि ब्लैक स्कर्फ और आलू के स्टैम कैंकर जैसी खतरनाक बीमारियों को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करती हैं. इन दोनों ही दवाओं को शीर्ष आलू शोध संस्थानों ने अपने शोध में प्रभावी पाया है.
क्या है काली चित्ती – Kali Chitti
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काली चित्ती (Kali Chitti) तथा स्टैम कैंकर दो ऐसे रोग हैं जो रीजोक्टोनिया सोलानी फंगस के कारण होते हैं. यह फंगस मिट्टी में 5 से 25 डिग्री तापमान में लंबे समय तक जीवित रह सकती है. यही कारण है कि इसे पूरी तरह समाप्त करना काफी मुश्किल है. हां, उचित फसल प्रबंधन अपनाकर इसे सक्रिय होने से रोका जा सकता है और फसल को हानि से बचाया जा सकता है. संक्रमण मिट्टी से य बीज की बुआई से पैदा होता है. और गीले मौसम में संक्रमण अधिक तेजी से फैलता है. हल्की और रेतीली में उगाए आलू पर रीजोक्टोनिया सोलानी फंगस ज्यादा हमला करती है.
रोग के लक्षण
काली चित्ती (Kali Chitti) जिसे अंग्रेजी में ब्लैक स्कर्फ रोग (Black scurf of potato) के कारण आलू की त्वचा पर काली सतह बन जाती है| इस पर हाथ फैरने से हाथ से रगड़ जैसी लगती है. जोर से रगड़ने पर काली सतह उतर भी जाती है. रोग के कारण पौधे के ऊपरी भाग में हरापन कम होने लगता है एवं पत्तियाँ बैंगनी रंग की दिखाई देती है| जड़ पर भी काले धब्बे बनने शुरू हो जाते हैं.
इनसे करें बीज उपचार potato seed treatment
थाइफ्लूजेमाइड 24% एससी Thifluzamide 24% SC
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थाइफ्लूजेमाइड 24% एससी (Thifluzamide 24% SC) एक सिस्टेमेटिक फंगीसाइड है. आलू के काली चित्ती रोग (aalu ka kali chhiti rog) को यह प्रभावी ढंग से रोकती है. इससे बीजोपचार बहुत फायदेमंद है (Aalu ka beej upchar) यह कैबोकसनिलीडी ग्रुप से संबंधित है. यह बीमारी को पैदा होने और उसे बढ़ने से रोकता है. फंगस के लिए ऊर्जा पैदा करने वाले उसे उत्तराधिकारियों को यह माइटोकनडेरिया में ही रोक देता है. इससे फंगस निष्क्रिय हो जाती है. सिलपायरोक्स जड़ें तेजी से सोखती हैं और यह जाइलम में प्रवेश कर जाता है. फिर पूरे पौधे में फैल जाता है.
थाइफ्लूजेमाइड 24% एससी को एमएमसी (FMC) कंपनी सिलपेरॉक्स (CILPYROX) ब्रांड नाम से बेचती है. इसी तरह इनसेक्टिसाइड इंडिया लिमिटेड (insecticides india limited) इसे प्लसर (Pulsar) नाम से बाजार में बेचती है. कई अन्य कंपनियों का भी यह टेक्निकल बाजार में आता है.
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मात्रा : थाइफ्लूजेमाइड 24% एससी एक एकड़ के बीज के उपचार के लिए 150 से 200 एमएल तक प्रयोग कर सकते हैं. दवा की मात्रा भी बीज वजन पर निर्भर करती है. बीज उपचार करने के लिए बीज को किसी पक्के स्थान या प्लास्टिक की सीट पर फैला लें. फिर दवा को स्प्रेयर में पानी के साथ मिलाकर बीज पर एकसार छि़ड़ककाव करें. फिर बीज को सूखाकर बो दें. ध्यान रहे कि छिड़काव एक समान हो और कोई भी बीज दवा बिना लगे न रहे.
पेनफ्ल्यूफेन 240 एफएसPenflufen 240 FS
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आलू के बीजउपचार के लिए यह एक नया पैराजोल कार्बोएग्जेमाइड फंगीसाइड है. पेनफ्ल्यूफेन आलू के कंद में अच्छे से बैठ जाता है. साथ ही इसका प्रभाव कंद के आसपास की मिट्टी पर भी हो जाता है. यहीं से कंद से अंकुरित हो रही कोपलों में यह फंगस को घुसने से रोक देता है. यह एक सिस्टेमेटिक जाइलम मोबाइल फंगीसाइड है. इसका मतलब है कि जब हम इससे आलू के बीज का उपचार करते हैं तो यह न केवल आलू के बीज में ही रहता है बल्कि धीर-धीरे यह बीज से कोपलों के अंकुरण के साथ पौधे के तने में भी चला जाता है. पेनफ्ल्यूफेन 240 एफएस बायर क्रॉप साइंस् इंडिया लिमिटिेड (Bayer cropscience) इमेस्टो प्राइम (Emesto® Prime) ब्रांड नाम से बेचती है.
मात्रा : 100 एमएल दवा 964 क्विंटल आलू बीज के लिए काफी है.
आलू के बीजोपचार की विधि : Aalu ka beej upchar ki vidhi : सर्वश्रेष्ठ परिणाम पाने के लिए 100 एमएल दवा को ढाई से तीन लीटर पानी में घोल लें. आलू बीज को प्लास्टिक सीट या बोरियों पर फैला लें. फिर घोल का एकसमान रूप से बीज पर छिड़काव कर दें. आप स्प्रेयर या फव्वारे से ऐसा कर सकते हैं. इसके बाद बीज को छाया में सूखा दें.
नोट : लेख में दी गई जानकारी किसानों के अनुभव, कंपनियों के उत्पाद लेखों और Central Potato Research Institute Shimla तथा अन्य शोध संस्थानों द्वारा उपलब्ध कराई सामग्रियों से ली गई है. लेख में दी गई किसी भी दवा का उपयोग करने से पहले कृषि विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें.