इन्फोपत्रिका. हरियाणा में डीएपी खाद (DAP Khad) की किल्लत लगातार बढ़ती जा रही है. हालांकि सरकार का कहना है कि खाद (DAP Khad) की कोई कमी नहीं है और जिस किसान को जितनी खाद चाहिए होगी उतनी मिलेगी. परंतु हकीकत देखें तो समझ में आता है कि खाद की भरपाई नहीं हो पा रही है. इसकी वजह से किसानों को हर दिन हंगामा करना पड़ रहा है.
यदि आप जानना चाहते हैं कि DAP न मिले तो किस खाद का इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे उत्पादन भी बढ़ेगा और लागत भी 25% तक कम हो जाएगी, तो ये आर्टिकल ज़रूर पढ़ें – DAP की जगह डालें SSP, अच्छी होगी फसल
शुक्रवार को महेंद्रगढ़ में हालात ऐसे हो गए कि पुलिस को थानों से खाद (DAP Khad) बांटनी पड़ी. दैनिक भास्कर में छपी एक रिपोर्ट के हिसाब से महेंद्रगढ़ और नारनौल के किसानों में आक्रोश फैल गया, जब उन्हें डीएपी खाद नहीं मिली. नांगल चौधरी में किसान सुबह 4:00 बजे से ही खाद के लिए लाइन में लग गए थे. परंतु 10:00 बजे तक भी जब दुकान नहीं खुली तो किसानों का गुस्सा चरम पर पहुंच गया. गुस्साए किसानों ने सड़क को जाम कर दिया. पुलिस की गाड़ी पहुंची तो पुलिस पर पथराव करने जैसी खबरें भी सामने आई. पत्थरबाजी में तीन पुलिसकर्मियों को चोट लगी है. रिपोर्ट के अनुसार, हिंसक भीड़ के कारण पुलिस ने वहां से भाग कर अपनी जान बचाई.
हरियाणा के कृषि मंत्री JP Dalal ने ये कहा
![](https://infopatrika.in/wp-content/uploads/2021/10/image-13.png)
हरियाणा के कृषि मंत्री जेपी दलाल (JP Dalal) कहते हैं कि प्रदेश में डीएपी खाद (DAP Khad) की कमी नहीं है. यह खाद विदेश से आती है और इसके लिए सरकार को प्रति बैग 2700 से लेकर ₹2800 तक खर्च करने पड़ रहे हैं. लेकिन हालात को नियंत्रण में रखने के लिए प्रतिदिन खाद के आने और उसके बचने की रिपोर्ट ली जा रही है, ताकि पता चल सके कि कितनी खाद आई और कितने किसानों को मिली.
खाद की मांग और आपूर्ति के आंकड़े
रबी सीजन में डीएपी खाद (DAP Khad) की डिमांड ढाई लाख तक पहुंच जाती है. लेकिन अब तक केवल 1.17 लाख टन ही उपलब्ध हो पाई है. प्रदेश में डीएपी का स्टॉक 27000 टन है, यूरिया का 1.77 लाख टन है और SSP 44 हजार टन र एनपीके 6400 टन.
क्यों हो रही है ये समस्या
हरियाणा के महेंद्रगढ़ और नारनौल में रबी की फसल में सरसों की बुआई ज्यादा होती है. रिपोर्ट के अनुसार, अभी तक केवल 30 प्रतिशत रकबे पर ही बिजाई हो सकी है, जबकि 70 प्रतिशत रकबा खाली है. सरसों की बुआई में जितनी देरी होगी, किसानों को उतनी ही परेशानी होगी और उत्पादन भी कम होगा.