इन्फोपत्रिका
विश्व में बासमती चावल (Basmati rice) की बढती मांग से अब नेपाल जैसा बासमती आयातक देश भी निर्यातक बनने के सपने देखने लगा है. बासमती चावल की घरेलू मांग के लिए भारत पर निर्भर नेपाल अपने किसानों को बासमती धान उगाने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है. इसके लिए एक राष्ट्रीय कार्ययोजना बनाई है. नेपाल सरकार के प्रयास कुछ रंग भी ला रहे हैं. नेपाल के सुदूर पश्चिम में बासमती से मिलती जुलती हंसराज किस्म का बुआई क्षेत्र इस बार बढा है.
इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट ऑन राइस : करंट सिनारियो एंड एविडेंस ऑफ ऑरिजन, डाइवर्सिटी, कल्टिवेशन एंड यूज वेल्यू ऑफ बासमती राइस इन नेपाल नामक एक जर्नल में दावा किया गया है कि नेपाल के 60 जिलों में बासमती जैसी 133 चावल की किस्में आदिकाल से उगाई, बेची और खाई जाती है. जर्नल में शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि नेपाल आदिकाल से बासमती चावल के उत्पादन के लिए एक आदर्श इलाका रहा है.
ये हैं नेपाल की बासमती किस्में
बासमती जैसे चावल की चार किस्में (Rice variety) नेपाल के राष्ट्रीय बीज बोर्ड में रजिस्ट्रर्ड हैं. 2006 में जेठो बुद्धो चावल किस्म को रजिस्ट्रर्ड किया गया. 2010 में लालका वैरायटी पंजीकृत हुई. 2020 में सुधोधन और कालोनुनिया किस्मों का पंजीकरण बीज बोर्ड ने किया था.
हंसराज किस्म पर सबसे ज्यादा जोर
नेपाल के समाचार पत्र द काठमांडू पोस्ट में प्रकाशित एक लेख के अनुसार नेपाल में बहुत पहले से ही धान की हंसराज (Hansraj basmati) नामक वैरायटी उगाई जाती है. नेपाल के कृषि विशेषज्ञ दावा करते हैं कि यह बासमती (Basmati rice) की ऑरिजनल किस्म है. इस किस्म को 60 से लेकर 1100 मीटर ऊंचाई वाले इलाकों में उगाया जाता है. हंसराज किस्म की खेती नेपाल के बाझांग, बेटाडी, डारचुला, डाडेलधुरा, झापा, कंचनपुरा, मोरांग, पालपा, प्यूथान, सालयान, सुनसारी, सुरखेत और स्यानगजा जिलों में होती है.
रंग ला रही है सरकार की कोशिशें
नेपाल सरकार की कोशिशों का असर दिखने लगा है. सरकार के बिक्री में सहायता के आश्वासन के बाद अकेले बाझांग जिले में ही 2000 हेक्टेयर में इस बार हंसराज किस्म की बुआई किसानों ने की है. जिले में कुल 7500 हेक्टेयर में धान लगाया गया है. अन्य जिलों में भी हंसराज किस्म का बुआई क्षेत्र बढा है. सरकार ने किसानों को न केवल हंसराज धान लगाने में मदद का आश्वासन दिया है बल्कि बिक्री में सहायता का भी भरोसा दिलाया है. सरकार किसानों की मदद चावल निकालने, पैकेजिंग, लेबलिंग और मार्केटिंग करने में करेगी. शुरुआत में बड़े शहरों में हंसराज चावल को बेचने की योजना बनाई है. द काठमांडू पोस्ट के अनुसार सरकार की नजर केवल घरेलू बाजार पर ही नहीं है. वह अंतरराष्ट्रीय बाजार पर भी आंख लगाए है. नेपाल को भरोसा है कि उसके बासमती चावल (Basmati rice) को भी विदेशों में उतना ही पसंद किया जाएगा जितना भारत और पाकिस्तान के बासमती चावल को किया जाता है.
हंसराज से किसानों का हो गया था मोहभंग
नेपाल की हंसराज सहित चावल की अन्य देशज किस्मों से किसानों का पिछले कुछ सालों से मोहभंग हो चुका था. हंसराज और अन्य देशज किस्मों की पैदावार कम होती है और इनमें रोग ज्यादा लगते हैं. इसलिए किसान इनकी जगह अधिक पैदावार देने वाली आधुनिक किस्मों को प्राथमिकता देने लगे.
भारत से आयात करता है बासमती
नेपाल में बासमती चावल (Basmati rice) की मांग दिनों दिन बढती जा रही है. फिलहाल नेपाल भारत से चावल आयात करता है और इसमें बहुत बड़ा भाग बासमती चावल का है. नेपाल राष्ट्र बैंक के अनुसार पिछले वित्तीय वर्ष में नेपाल ने 50.48 बिलियन नेपाली रुपए का चावल आयात किया था. नेपाल की चावल मांग में प्रतिवर्ष करीब 51 फीसदी की बढोतरी हो रही है. नेपाल के उच्च वर्ग के भोजन में बासमती चावल अहम स्थान ले चुका है.
भारत के जीआई टैग के दावे पर आपत्ति
भारत ने बासमती के लिए यूरोपीय यूनियन में जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग के लिए जुलाई 2018 में आवेदन किया था. नेपाल ने 9 दिसंबर 2020 को भारत के आवेदन के खिलाफ यूरोपीय यूनियन में आपत्ति दर्ज कराई. नेपाल ने कहा है कि बासमती चावल का जीआई टैग भारत को न दिया जाए क्योंकि नेपाल के पास भी बासमती चावल का जीआई टैग हासिल करने के पर्याप्त और वैध प्रमाण मौजूद हैं.